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मैं वापस नहीं आऊँगा। और शांत और खामोश गुनगुनी सी रात दुनिया को लोरी सुनाएगी अपने अकेले चाँद की चाँदनी में।
मेरा शरीर नहीं होगा, और चौपट खुली खिड़की से, एक ताजा झोंका आकर मेरी आत्मा के बारे में पूछेगा।
मैं नहीं जानता किसी को मेरी दोहरी अनुपस्थिति का इंतजार है या नहीं, या दुलारते बिलखते लोगों में से कौन मेरी स्मृति को चूमेगा।
फिर भी, तारे और फूल रहेंगे, आहें और उम्मीदें होंगी, पेड़ों की छाया तले रास्तों में प्रेम पनपता रहेगा।
और वह पियानो इस शांत रात की तरह बजता रहेगा, और मेरी खिड़की के चौखटे में, उसे ध्यान मगन हो सुनने वाला कोई न होगा।
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